भोपाल रविवार 23 फरवरी 2020 । लगभग सवा वर्ष पहले मध्यप्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस ने जिन लोकलुभावन वादों का सहारा लिया था अब वे उसके गले की फांस बन गए हैं। राज्य के बिगड़े बजटीय हालातों में वादे पूरे करना तो दूर कर्मचारियों के वेतन तक के लाले पड गए हैं। कई योजनाएं लटक गई हैं, जबकि कई योजनाओं की रफ्तार थम गई है। इस साल रिटायर होने जा रहे लगभग बारह हजार कर्मचारियों के देयकों का भुगतान तक मुश्किल हो गया है। दरअसल, ये कर्मचारी 2018 में ही रिटायर हो जाते, पर तत्कालीन शिवराज सरकार ने पदोन्न्ति में आरक्षण के कारण अटकी पदोन्न्ति की नाराजगी दूर करने के लिए सेवानिवृत्ति की उम्र 60 से बढ़ाकर 62 साल कर दी थी।
अब उनके रिटायरमेंट का समय आया तो सरकार की सांस फिर फूलने लगी है क्योंकि उन्हें देने के लिए लगभग चार हजार करोड़ की रकम सरकार के पास नहीं है। ऐसे में सरकार उन्हें संविदा पर सेवा में इस उम्मीद के साथ बनाए रखना चाहती है कि अगले वर्ष तक भुगतान का रास्ता बना लेगी।
लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। राज्य में खजाने के हालात इस कदर खराब हो गए हैं कि छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति पर रोक लगाने पर विचार चल रहा है। इसके अलावा कई अन्य योजनाएं भी बंद की जा रही हैं।
कमलनाथ सरकार के लिए यह जितना असहज करने वाली स्थिति है, उससे कहीं अधिक जनता के सपनों पर कुठाराघात भी है। उम्मीद थी कि वादों को पूरा करके सरकार कांग्रेस की कमजोर हो चुकी जड़ों को मजबूत करेगी और वादे निभाने की नजीर भी रखेगी, लेकिन खजाने की ऐसी दुश्वारियां सामने आईं कि कई पुरानी योजनाएं ही बंद हो गईं तो कुछ के सिर्फ नाम बचे हैं।
कांग्रेस ने वचन-पत्र में हर वर्ग को साधने का प्रयास किया था। कर्मचारियों से कई वादे किए गए थे। इनमें कर्मचारियों और पेंशनर्स की महंगाई भत्ता और राहत में वृद्धि अभी तक नहीं हुई है। पदोन्न्ति में आरक्षण का रास्ता नहीं निकला है तो संविदा कर्मी न्यूनतम वेतनमान के लिए तरस रहे हैं।
अतिथि विद्वान दो माह से नियमितीकरण के लिए धरने पर बैठे हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार वादे पूरा करना नहीं चाहती पर संकट बजट को लेकर है। राज्य पर एक लाख 80 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। आगे और कर्ज लेने की तैयारी है।
राज्य सरकार इसका ठीकरा पूर्ववर्ती शिवराज सरकार के वित्तीय प्रबंधन की कमी और केंद्र सरकार के असहयोग पर फोड़ रही है। कमलनाथ आरोप लगा रहे हैं कि केंद्र ने अधिकतर योजनाओं में अपना हिस्सा घटाकर राज्य पर आर्थिक बोझ डाल दिया है और केंद्रीय करों में 14 हजार 233 करोड़ रुपए कटौती कर दी।
अतिवृष्टि और बाढ़ से आठ हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ पर केंद्र ने राहत पैकेज के लिए सिर्फ एक हजार करोड़ रुपए दिए। इसका भार भी राज्य के ऊपर ही आएगा। ऐसी सूरत में राज्य सरकार के सामने प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास का कोटा दो लाख कम करने जैसे कदम उठाने के अलावा कोई अन्य विकल्प ही नहीं था।
दूसरी ओर राज्य स्ववित्तीय स्रोत बढ़ाने के बाद भी राज्य करों से करीब आठ हजार करोड़ रुपए कम मिलने के आसार हैं। इसके चलते सरकार को विभागीय बजट में 20 प्रतिशत की कटौती को हाल ही में और बढ़ाना पड़ा है। इधर, कर्जमाफी का दूसरा और तीसरा चरण भी पूरा करना है, जिसके लिए छह-सात हजार करोड़ रुपए की जरूरत होगी।