30% आबादी वाली 9 राज्य सरकारें नागरिकता कानून के विरोध में, 7 राज्य बोले- नेशनल रजिस्टर भी लागू नहीं करेंगे


नई दिल्ली रविवार 22 दिसम्बर 2019. देश में पिछले एक हफ्ते के दौरान 14 राज्यों में हुए विरोध प्रदर्शनों के बीच दो मुद्दे उभरकर सामने आए। पहला- नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए और दूसरा- नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन यानी एनआरसी। नागरिकता कानून का अब तक 9 मुख्यमंत्रियों ने विरोध किया है। ये मुख्यमंत्री उन 9 राज्यों में सरकार चला रहे हैं, जहां देश का एक तिहाई भूभाग आता है और 30% आबादी रहती है। इनमें से 18% आबादी वाले 5 राज्य ऐसे हैं, जहां के मुख्यमंत्रियों ने साफतौर पर कह दिया है कि हम इस कानून को लागू नहीं होने देंगे। दूसरे मुद्दे एनआरसी की बात करें तो इस योजना का खाका तैयार होने से पहले ही 7 मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि वे इसे अपने राज्य में लागू नहीं होने देंगे। विरोध कर रहे राज्यों में देश का 22% भूभाग है और 30% आबादी रहती है।
नागरिकता कानून पर बाकी 4 राज्यों का रुख
मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और दिल्ली के मुख्यमंत्री भी नागरिकता कानून का विरोध कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने साफ तौर पर ये नहीं कहा है कि वे इसे लागू नहीं होने देंगे। मप्र और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने कहा है कि हमारा रुख वही होगा, जो कांग्रेस का होगा। तेलंगाना में सत्तारूढ़ टीआरएस ने संसद में इस बिल का विरोध किया था, लेकिन इसे लागू करने को लेकर उसका रुख साफ नहीं है।
अन्य राज्यों का रुख


मध्यप्रदेश, राजस्थान और पुड्डुचेरी में कांग्रेस की सरकारें हैं। इन्होंने नागरिकता कानून का विरोध तो किया है, लेकिन एनआरसी आने की स्थिति में उसे लागू होने देंगे या नहीं, इस पर रुख साफ नहीं किया है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एनआरसी पर सिर्फ यही तंज कसा था कि दिल्ली में इसके लागू होते ही भाजपा नेता मनोज तिवारी को राज्य छोड़कर जाना पड़ जाएगा।
तेलंगाना और तमिलनाडु की सरकार ने भी नेशनल रजिस्टर के मुद्दे पर अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
शिवसेना जब भाजपा के साथ थी, तब वह नेशनल रजिस्टर के समर्थन में थी। अब वह राकांपा और कांग्रेस के समर्थन से सरकार चला रही है, ऐसे में यह साफ नहीं है कि क्या मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे नेशनल रजिस्टर का समर्थन करेंगे?


आखिरी एनआरसी है क्या?


एनआरसी भारत के सभी नागरिकों के लिए होगा। यह सिटिजन रजिस्टर होगा, जिसमें देश के हर नागरिक को अपना नाम दर्ज कराना होगा। सरकार का दावा है कि यह आधार कार्ड या किसी दूसरे पहचान पत्र जैसा ही होगा। नागरिकता के रजिस्टर में नाम दर्ज कराने के लिए आपको अपना कोई भी पहचान पत्र या अन्य दस्तावेज देना होगा, जैसा कि आप आधार कार्ड या मतदाता सूची के लिए देते हैं।
सरकार ने नागरिकता कानून को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू होने के बाद 13 सवाल-जवाब जारी किए थे। इसमें से 10 सवाल एनआरसी पर थे। इसमें सरकार ने कहा है कि देश के लिए एनआरसी के नियम और प्रक्रिया तय होने अभी बाकी हैं। असम में जो प्रक्रिया चल रही है, वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश और असम समझौते के तहत की गई है।


सीएए क्या है?
भारतीय नागरिकता कानून 1955 में लागू हुआ था, जिसमें बताया गया है कि किसी विदेशी नागरिक को किन शर्तों के आधार पर भारत की नागरिकता दी जाएगी। इस कानून में हाल ही में संशोधन किया गया। इसके बाद इसका नाम बदलकर सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट यानी सीएए हो गया। इसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आने वाले हिंदू, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाई धर्म के शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। इन तीन देशों से आने वाले इन 6 धर्मों के शरणार्थियों को भारतीय नागरिक बनने के लिए 11 साल की जगह 5 साल रहना जरूरी होगा।



संवैधानिक व्यवस्था के तहत राज्य सरकारें केंद्र के बनाए कानून को मानने के लिए बाध्य
इस बारे में संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 11 के तहत नागरिकता पर कानून बनाना पूरी तरह से संसद के कार्यक्षेत्र व अधिकार क्षेत्र में आता है। राज्यों को इस मामले में कोई अधिकार नहीं है। अगर ये इसे अपने यहां लागू नहीं करते हैं तो यह संविधान का उल्लंघन होगा। राज्यों के पास दो विकल्प हैं। वे इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं या अगले लोकसभा चुनाव में बहुमत मिलने पर कानून बदल सकते हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट कहती है कि एनआरसी संविधान का उल्लंघन है तो फिर यह कहीं पर भी लागू नहीं होगा। लेकिन अगर यह संविधान का उल्लंघन नहीं माना गया तो सभी राज्यों को इसे अपने यहां लागू करना होगा।



केंद्र के पास अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने का भी विकल्प


संविधान की सातवीं अनुसूची केंद्र सरकार को नागरिकता पर कानून बनाने का अधिकार देती है। राज्य सरकारें इसे मानने के लिए बाध्य हैं।
संविधान का अनुच्छेद 249 संसद को राष्ट्रहित में राज्यों से संबंधित विषयों पर भी कानून बनाने का अधिकार देता है।
अनुच्छेद 256 और 257 के तहत किसी भी राज्य के लिए केंद्रीय कानून को नहीं मानना कानूनी रूप से जायज नहीं है।
केंद्र सरकार अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति से यह सिफारिश कर सकती है कि कोई राज्य विशेष संवैधानिक प्रावधानों को अमल में नहीं ला रहा है और वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाना चाहिए।


राज्यों का रुख
1) बिहार
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यहां एनडीए की सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। नागरिकता कानून पर तो उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर मुस्लिमों को भड़काया जा रहा है, लेकिन प्रस्तावित नेशनल रजिस्टर के लिए उन्होंने कहा, ''काहे का एनआरसी, बिहार में क्यों लागू होगा एनआरसी?'' एनडीए में सहयोगी दल लोजपा ने भी यू-टर्न लेते हुए एनआरसी का विरोध किया है।


2) पश्चिम बंगाल
देश की 7.3% आबादी बंगाल में रहती है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कह चुकी हैं कि जब तक राज्य में तृणमूल कांग्रेस की सरकार है, हम नागरिकता कानून या एनआरसी लागू नहीं होने देंगे। सरकार इनके लिए संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में जनमत संग्रह कराए।


3) आंध्र
3.9% आबादी इस राज्य में रहती है। राज्य में सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस ने संसद में नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन किया था। हालांकि, पार्टी ने अब कहा है कि वह आंध्र प्रदेश में एनआरसी के किसी भी फॉर्मेट को लागू किए जाने का विरोध करेगी।


4) ओडिशा
देश की 3.3% आबादी इस राज्य में है। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की अगुआई वाले बीजद ने संसद में नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन किया था। पटनायक ने कहा कि इस कानून का देश में रह रहे भारतीयों से कोई लेनादेना नहीं है। यह सिर्फ विदेशियों के लिए है। लेकिन बीजद सांसद लोकसभा और राज्यसभा में एनआरसी का समर्थन नहीं करेंगे।


5) केरल
2.6% आबादी वाले इस राज्य में माकपा के पिनाराई विजयन मुख्यमंत्री हैं। वे नागरिकता कानून और एनआरसी को अपने राज्य में लागू होने देने के खिलाफ हैं।



6) पंजाब
देश की 2.2% आबादी पंजाब में है। कांग्रेस की सरकार चला रहे मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने हाल ही में कहा कि नागरिकता कानून हो या एनआरसी, ये पंजाब की विधानसभा से पारित नहीं होंगे। दोनों ही एकतरफा हैं। एनआरसी के जरिए आप किसी को जबर्दस्ती देश छोड़कर जाने को नहीं कह सकते।



7) छत्तीसगढ़
2% आबादी वाले इस राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि हम एनआरसी पर दस्तखत नहीं करेंगे। मुझे यह साबित करने की जरूरत क्यों है कि मैं भारतीय हूं?